आँखें बंद की तो एक चेहरा नज़र के सामने उभरा
जाना पहचाना लगा ... अरे ये तो रूहान का चेहरा था
एक पल अपना, दूजे पल बेगाना सा लगा
अरे ये तो रूहान का चेहरा था !
मुझे यूं लगा या वाकई में वो चेहरा मुझसे बोला
क्या मिलेगा तुम्हे बाशिंदे से भटक कर
कभी इधर, कभी उधर
तपती धुप में लरज कर !
और उसने ये भी कहा
सपनो की दीवारों के पीछे रहने वाली
तुम रेगिस्तान से दोस्ती मत करना
रेत में छुप के रह जाओगी
ज़रा चल के ज़िन्दगी के पास जाओ
फूलो सी मेहकोगी और मुस्कुराओगी !
कुछ यू ही बातें करते हुए
वक़्त ज़रा गुज़र सा गया
पता ही नहीं चला
कि कब रूहान का चेहरा अपना सा हो गया !
इससे पहले कि कुछ और जुमले बोले जातें
हवा का एक झोंका आया
और रूहान को थोरा सा मिटा गया !
उसके चेहरे पे चमकते सितारों को पकड़ना चाहा
तो फिसल के वो इधर उधर बिखर गए
साथ ही ये कहते गए
हम ऐसे नहीं सिम्टेंगे !
जब तक आँखों को बंद करके
दिल पे हाथ रख के
हर एक सितारे को याद नहीं करोगी
तब तक तुमसे नज़रें बचाते फिरेंगे !
बस एक बार को ये आज़मा के देखो
रूहान के चेहरे को दिल में बसा के देखो
उसकी हर इक नज़र तुम्हारी होगी !
और जिस दिन ये हुआ उस दिन ये दुनिया तो क्या
पूरी कायनात तुम्हारी होगी !
No comments:
Post a Comment